भगवान विष्णु के दशावतारों में से नृसिंह अवतार एक महत्वपूर्ण और अद्भुत रूप है, जिसमें उन्होंने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और अधर्म के प्रतीक हिरण्यकशिपु का अंत करने के लिए अवतार लिया। यह कथा न केवल भक्ति और विश्वास की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि जब अन्याय और अहंकार अपनी चरम सीमा पर होता है, तब ईश्वर स्वयं अवतरित होकर धर्म की रक्षा करते हैं। आइए, इस कथा को विस्तार से समझते हैं।
हिरण्यकशिपु का अहंकार और अत्याचार
प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नामक एक असुर राजा हुआ था। वह बहुत बलशाली और अहंकारी था। उसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि न वह किसी मानव या पशु द्वारा मारा जा सकेगा, न ही उसे दिन में या रात में कोई मार सकेगा, न ही उसे किसी घर के अंदर या बाहर मारा जा सकेगा, और न ही किसी हथियार से उसका वध होगा। इस वरदान ने हिरण्यकशिपु को अजेय बना दिया और वह अत्याचार करने लगा। उसने खुद को भगवान मान लिया और सभी को आदेश दिया कि सिर्फ उसकी पूजा की जाए।
प्रह्लाद की भक्ति
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद एक सच्चे विष्णु भक्त थे। प्रह्लाद ने अपने पिता के अत्याचारों के बावजूद भगवान विष्णु में अपनी अडिग भक्ति बनाए रखी। हिरण्यकशिपु को यह बिल्कुल भी सहन नहीं हुआ कि उसका पुत्र भगवान विष्णु का भक्त हो और उसकी पूजा न करे। उसने प्रह्लाद को कई तरह की यातनाएँ दीं, लेकिन प्रह्लाद हर बार भगवान विष्णु की कृपा से बच जाते थे। प्रह्लाद का यह विश्वास और भक्ति हिरण्यकशिपु के अहंकार को चुनौती दे रही थी, और उसने प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया।
हिरण्यकशिपु का प्रह्लाद से संवाद
एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से गुस्से में पूछा, “कहाँ है तेरा भगवान? क्या वह इस खंभे में है?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “भगवान हर जगह हैं, वह इस खंभे में भी हैं।” हिरण्यकशिपु ने क्रोध में आकर उस खंभे पर प्रहार किया और उसी समय भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण किया। नृसिंह आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए।
नृसिंह अवतार का प्रकट होना
भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु के वरदान को निष्फल कर दिया। उन्होंने न तो मानव का रूप लिया और न ही पशु का, बल्कि आधे मानव और आधे सिंह का रूप धारण किया। उन्होंने हिरण्यकशिपु को न दिन में मारा और न ही रात में, बल्कि संध्या के समय (सूर्यास्त के समय) मारा। नृसिंह भगवान ने उसे न घर के भीतर मारा और न ही बाहर, बल्कि घर के द्वार पर (चौखट पर) मारा। और उन्होंने उसे किसी हथियार से नहीं, बल्कि अपने नखों से मारा। इस प्रकार भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया और धर्म की रक्षा की।
प्रह्लाद का विजय और भक्ति की महिमा
हिरण्यकशिपु के वध के बाद, नृसिंह भगवान ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया और उनकी भक्ति की सराहना की। प्रह्लाद की भक्ति अडिग थी, और उन्होंने कभी अपने विश्वास को नहीं छोड़ा, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आईं। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास के सामने दुनिया की कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती। भगवान अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते हैं, चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो।
नृसिंह अवतार का महत्व
नृसिंह अवतार न केवल भगवान विष्णु के असीम बल और करुणा का प्रतीक है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है। जब-जब कोई अत्याचारी अपने अहंकार के कारण धर्म का अपमान करता है, तब-तब भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं। इस अवतार से यह भी सीखने को मिलता है कि कोई भी व्यक्ति अपने अहंकार और शक्ति के बल पर ईश्वर से ऊपर नहीं हो सकता।
प्रह्लाद और नृसिंह अवतार की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास से बड़ा कोई बल नहीं है। अहंकार, अत्याचार, और अधर्म का अंत निश्चित है। भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर यह सिद्ध किया कि जब धर्म पर संकट आता है, तो वह हर हाल में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
नृसिंह अवतार किसके वध के लिए लिया गया था?
नृसिंह अवतार भगवान विष्णु ने हिरण्यकशिपु के वध के लिए लिया था, जो एक अत्याचारी और अहंकारी असुर था।
प्रह्लाद कौन थे?
प्रह्लाद हिरण्यकशिपु के पुत्र थे और भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने हर परिस्थिति में भगवान विष्णु में अपनी भक्ति बनाए रखी।
नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु का क्या रूप था?
नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधे मानव और आधे सिंह का रूप धारण किया था।
नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को कैसे मारा?
नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को संध्या के समय घर की चौखट पर अपने नखों से मारकर उसका वध किया, जिससे ब्रह्मा के वरदान का कोई उल्लंघन न हो।
नृसिंह अवतार का क्या महत्व है?
नृसिंह अवतार अधर्म, अत्याचार, और अहंकार के अंत का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर संभव रूप धारण कर सकते हैं।